Mann Ke Bhaav offers a vast collection of Hindi Kavitayen. Read Kavita on Nature, sports, motivation, and more. Our हिंदी कविताएं, Poem, and Shayari are available online!
प्रेरक वचन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
प्रेरक वचन लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
अक्तूबर 02, 2021
गाँधीजी एवं शास्त्रीजी की स्मृति में श्रद्धासुमन
सितंबर 25, 2021
वो सुबह कभी तो आएगी
जब पैरों में बेड़ी नहीं,
कंधों पर खुलते पर होंगे,
जब किस्मत में पिंजरा नहीं,
खुला नीला गगन होगा,
जब बंदिश का बंधन नहीं,
अविरल धारा सा मन होगा,
जब जागते नयनों में भी,
सच होता हर स्वपन होगा ||
सितंबर 14, 2021
हिंदी दिवस पर विशेष
संस्कृत की संतान है हिंदी,
संस्कृत सी महान है हिंदी,
भारत की पहचान है हिंदी,
भारत का अभिमान है हिंदी,
भूत का बखान है हिंदी,
भविष्य की उड़ान है हिंदी,
बूढ़ी नहीं जवान है हिंदी,
पीढ़ी का रुझान है हिंदी,
पुरखों का वरदान है हिंदी,
मेरा दिल मेरी जान है हिंदी ||
सितंबर 12, 2021
काश! तितली बन जाऊँ !
नन्हे-नन्हे पर हों मेरे,
फूलों पर मैं मंडराऊँ,
रंगों का पर्याय बनूँ मैं,
कीट कभी ना कहलाऊँ,
सोचा करता हूँ अक्सर मैं,
काश! तितली बन जाऊँ !
जनम भले ही जैसा भी हो,
गाथा अपनी खुद लिख पाऊँ,
पिंजरे को तोड़ मैं इक दिन,
पंख फैला कर उड़ जाऊँ,
सोचा करता हूँ अक्सर मैं,
काश! तितली बन जाऊँ !
अंधड़ में बहकर भी मैं बस,
सुंदरता ही फैलाऊँ,
दो क्षण ही अस्तित्व अगर हो,
जीवनभर बस मुस्काऊँ,
सोचा करता हूँ अक्सर मैं,
काश! तितली बन जाऊँ !!
सितंबर 05, 2021
पैरालंपिक्स के वीर
भारतीय पैरालंपिक वीरों को अभूतपूर्व प्रदर्शन पर ढेरों बधाई एवं शुभकामनाएं |
एक-आध तमगे नहीं, जीते पदक आदतन,
अविश्वसनीय अकल्पनीय अद्वितीय आरोहण ||
अगस्त 22, 2021
बदलाव की आहट
हवाओं का रुख कुछ बदला-बदला सा है,
अमावस का चाँद भी उजला-उजला सा है,
संगमरमर की चट्टानों ने भी आज भरी है साँस,
दुनिया बनाने वाले का मिज़ाज कुछ बदला-बदला सा है ||
अगस्त 08, 2021
मिल्खा सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि
मिल्खा सिंह जी को कल गए हुए पूरे पचास दिन हो गए | नीरज चोपड़ा ने कल उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी, उनका स्वप्न पूरा करके | नीरज की उपलब्धि एवं मिल्खा जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कुछ पंक्तियाँ -
कमल (नीरज) खिला है आज ओलिंपिक के मैदान में,
मिल्खा झूम रहे होंगे उस पार उस जहान में ||
काश मिल्खा कुछ दिन और जी लेते,
जीते जी अपने सपने को जी लेते ||
अगस्त 05, 2021
हॉकी में पदक पर बधाई
बहुत दिनों बाद ऐसी सुबह आई है,
ना रंज है, ना गम है, ना रुसवाई है,
जीत की कहानी हमने दोहराई है,
कांस्य पदक पर पूरे राष्ट्र को बधाई है ||
जुलाई 29, 2021
मैरी कॉम
हार-जीत में क्या रखा जीवन के अंग हैं,
प्रेरक तेरा जीवन है, तेरे हर रंग हैं ||
ओलिंपिक पदक विजेता एम. सी. मैरी कॉम को समर्पित |
जीवनयात्रा
पथ पर पग भरते-भरते,
यात्रा संग करते-करते,
आता है औचक एक मोड़,
देता है जत्थे को तोड़,
बंट जाती हैं राहें सबकी,
बढ़ते हमराही को छोड़,
गम की गठरी को ना ले चल,
सुख के पल यादों में जोड़,
गाथा नूतन तू लिखता चल,
हर इक रस्ते हर इक मोड़ ||
जुलाई 24, 2021
सोने का तमगा आएगा
उगते सूरज की धरती पर तिरंगा लहराएगा,
राष्ट्रगान गूँजेगा, सोने का तमगा आएगा ||
जुलाई 20, 2021
पिंजरे का पंछी
मैं बरखा की बूँदों सा बादलों में रहता हूँ,
पवन के झोकों में मैं मेघों की भांति बहता हूँ,
डैनों को अपने फैलाए नभ पर मैं विचरता हूँ,
मैं पिंजरे का पंछी नहीं आसमान की चिड़िया हूँ |
मैं जब जी चाहे सोता हूँ जब जी चाहे उठता हूँ,
घोंसले को संयम से तिनका-तिनका संजोता हूँ,
धन की ख़ातिर ना सुन्दर लम्हों की ख़ातिर जीता हूँ,
मैं पिंजरे का पंछी नहीं आसमान की चिड़िया हूँ |
पैरों में मेरे बेड़ी है पंखों पर कतरन के निशान,
जीवन में मेरे बाकी बस – बंदिश लाचारी और
अपमान,
पिंजरे में कैद बेबस मैं सपना एकल बुनता हूँ,
मैं पिंजरे का पंछी नहीं आसमान की चिड़िया हूँ ||
मई 01, 2021
गंतव्यपथ
बढ़ते-बढ़ते जब खुद को तुम,
भटका हुआ पाओगे,
अंधियारे में मंज़िल की,
राहों से खो जाओगे,
हालातों से हारकर जब तुम,
बस रुकना चाहोगे |
हिम्मत को अपनी बाँध बस तुम,
आगे बढ़ते जाना,
लक्ष्य की सिद्धी से पहले,
खुद-ब-खुद मत रुक जाना,
क्या मालूम दो पग आगे ही,
लिखा हो मंज़िल पाना ||
अप्रैल 20, 2021
हारेंगे नहीं हम
मन में संकल्प ठान कर,
काटों को रस्ता मान कर,
बढ़ते जायेंगे हम,
हारेंगे नहीं हम |
इक पग को पीछे रखकर,
दो पग आगे सरककर,
भागेंगे तेज़ हम,
हारेंगे नहीं हम |
हमराही से बिछड़कर,
अपनों से चाहे लड़कर,
भले अकेले हम,
हारेंगे नहीं हम |
सच का हाथ पकड़कर,
दुश्मन के हाथों मरकर,
फिर-फिर जीयेंगे हम,
हारेंगे नहीं हम |
रस्ते में थोड़ा थककर,
ठोकर खाकर और गिरकर,
फिरसे उठेंगे हम,
हारेंगे नहीं हम |
मंज़िल को अपना बनाकर,
राह के काँटों को मिटाकर,
इक दिन जीतेंगे हम,
तब तक,
हारेंगे नहीं हम ||
मार्च 11, 2021
क्या देखूँ मैं ?
रिमझिम बरखा के मौसम में,
घोर-घने-गहरे कानन में,
मेरे नैनों के दर्पण में,
छवि अनोखी गोचर होती –
रंगों की कान्ति से उज्जवल,
सरिता की धारा सा अविरल,
डैनों के नर्तन, की संगी
दो भद्दी फूहड़ टहनियाँ !
लहराते पंखों की शोभा,
या बेढब पैरों की डगमग,
क्या देखूँ मैं ?
माटी के विराट गोले पर,
माया की अद्भुत क्रीड़ा में,
मेरे नैनों के दर्पण में,
छवि अनोखी गोचर होती –
बहती बयार की भांति
जीवनधारा, के हमराही
सुख के लम्हों, का साथी
किंचित कष्टों का रेला है !
हर्षित मानव का चेहरा,
या पीड़ित पुरुष अकेला,
क्या देखूँ मैं ?
पल दो पल की इन राहों में,
वैद्यों के विकसित आलय में,
मेरे नैनों के दर्पण में,
छवि अनोखी गोचर होती –
इत गुंजित होती किलकारी,
अंचल में नटखट अवतारी,
उत शोकाकुल क्रन्दनकारी,
बिछोह के गम से मन भारी !
उत्पत्ति का उन्मुक्त उत्सव,
या विलुप्ति का व्याकुल वास्तव,
क्या देखूँ मैं ?
जनमानस के इस जमघट में,
द्वैत के इस द्वंद्व में,
मेरे नैनों के दर्पण में,
छवि अनोखी गोचर होती –
इस ओर करुणा का सागर,
दीनों के कष्टों के तारक,
उस ओर पापों की गागर,
स्वर्णिम मृग रुपी अपकारक !
उपकारी सत के साधक,
या जग में तम के वाहक,
क्या देखूँ मैं ?
मेरे अंत:करण के भीतर,
चित्त की गहराइयों के अंदर,
मन के नैनों के दर्पण में,
छवि अनोखी गोचर होती –
इक सुगंधित मनोहर फुलवारी,
कंटक से डाली है भारी,
काँटों से विचलित ना होकर,
गुल पर जाऊं मैं बलिहारी !
पवन के झोकों में रहकर,
भी निर्भीक जलते दीपक,
को देखूँ मैं !
मार्च 08, 2021
आज की नारी
घर को सिर-माथे पर रखूँ,
ढोऊँ सारी ज़िम्मेदारी,
दफ़्तर भी अपने मैं जाऊँ,
बनकर मैं सबला नारी |
अपने माँ-बाबा को मैं हूँ,
जग में सबसे ज़्यादा प्यारी,
कष्टों को उनके हरने की,
करती हूँ पूरी तैयारी |
सुख-दुःख के अपने साथी पर,
दिल से जाऊँ मैं बलिहारी,
कंधे से कंधा मिलाकर,
चलती हमरी जीवनगाड़ी |
ओछी नज़रों से ना भागूँ,
चाहे बोले दुनिया सारी,
बन काली उसको संहारूँ,
वहशी विकृत व्यभिचारी |
अपनी मर्ज़ी से मैं जीऊँ,
सुख भोगूँ सारे संसारी,
मुझपर जो लगाम लगाए,
पड़ेगा, उसे बड़ा भारी |
देवी का सा रूप है मेरा,
हूँ ना मैं अबला बेचारी,
अपने दम पर शिखर को चूमूँ,
मैं हूँ, आज की नारी ||
मार्च 06, 2021
किस्मत
किस्मत की लकीरों में बंधकर,
खुद को तू ना तड़पा,
जो होना है वो तो होएगा,
जो कर सकता है करके दिखा |
नवंबर 17, 2020
मैंने एक ख्वाब देखा
माता की गोद जैसे,
मखमल के नर्म बिस्तर पर,
संगिनी की बांहों में,
निद्रा की गहराइयों में,
मैंने एक ख्वाब देखा |
नीले आज़ाद गगन में,
हल्की बहती पवन में,
पिंजरे को छोड़,
बेड़ी को तोड़,
उड़ता जाऊं क्षितिज की ओर |
श्वेत उजाड़ गिरी से,
ऊबड़-खाबड़ भूमि से,
ध्येय को तलाश,
राह को तराश,
बहता जाऊं सागर की ओर |
मिथ्या मलिन जगत से,
जीवन-मरण गरल से,
निद्रा से जाग,
व्यसनों को त्याग,
बढ़ता जाऊं मंज़िल की ओर ||
अक्तूबर 06, 2020
सुबह सूरज फिर आएगा
जब-जब जीवन के सागर में,
ऊँचा उठता तूफाँ होगा,
जब-जब चौके की गागर में,
पानी की जगह धुँआ होगा,
जब बढ़ते क़दमों के पथ पर,
काँटों का जाल बिछा होगा,
जब तेरे तन की चादर से,
तन ढकना मुमकिन ना होगा |
तब तू गम से ना रुक जाना,
ना सकुचाना, ना घबराना,
आता तूफाँ थम जाएगा,
पग तेरे रोक ना पायेगा,
कर श्रम ऐसा तेरे आगे,
पर्वत भी शीश झुकाएगा,
हंस के जी ले कठिनाई को,
सुबह सूरज फिर आएगा ||
सितंबर 08, 2020
नवजीवन
भद्दी नगरीय इमारत पर,
जड़ निष्प्राण ठूँठ पर,
मरु की तपती रेत पर,
गिरी के श्वेत कफ़न पर,
नवजीवन का अंकुर फूटे,
प्रतिकूल पर्यावरण का उपहास कर |
सदस्यता लें
संदेश (Atom)