हिंदी कविता Hindi Kavita उफ़ यह कैसा साल था Uff yeh kaisa saal thaट्रैक्टर पर निकली थी रैली,
गणतंत्र पर सवाल था,
लाल किले पर झंडा लेकर,
आतताईयों का बवाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
घर में बंद था पूरा घराना,
परदा ही बस ढाल था,
खौफ की बहती थी वायु,
गंगा का रंग भी लाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
उखड़ रही थी अगणित साँसें,
कोना-कोना अस्पताल था,
शंभू ने किया था ताण्डव,
दर-दर पर काल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
क्षितिज पर छाई फ़िर लाली,
टीका बेमिसाल था,
माँग और आपूर्ति के बीच,
गड्ढा बड़ा विशाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
ओलिंपिक में चला था सिक्का,
पैरालिंपिक तो कमाल था,
वर्षों बाद मिला था सोना,
सच था या ख्याल था ?
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
टूटा था वो एक सितारा,
मायानगरी की जो शान था,
बादशाह की किस्मत में भी,
कोरट का जंजाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
फीकी पड़ रही थी चाय,
मोटा भाई बेहाल था,
सत्ता के गलियारों में भी,
कृषकों का भौकाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
सुलूर से चला था काफिला,
वेलिंगटन में इस्तकबाल था,
रावत जी की किस्मत में पर,
हाय ! लिखा इंतकाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
काशी का बदला था स्वरूप,
मथुरा भविष्यकाल था,
आम आदमी का लेकिन,
फ़िर भी वही हाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
चुनावों का बजा था डंका,
गरमागरम माहौल था,
बापू को भी गाली दे गया,
संत था या घड़ियाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
स्कूटर पर आता-जाता,
दिखने में कंगाल था,
पर उसके घर में असल में,
200 करोड़ का माल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
थोड़ा-थोड़ा हर्ष था इसमें,
थोड़ा सा मलाल था,
थोड़े गम थे थोड़ी खुशियाँ,
जो भी था, भूतकाल था,
जैसा भी यह साल था ||
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वो कहने के विचार,
वो सकुचाना हर बार,
फिर आजीवन इंतज़ार ||
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हर हैं भोले हर ही भैरव, हर ही हैं करुणा के धाम ||
हिंदी कविता Hindi Kavita विजयपथ Vijaypathकाँटों के बगैर कोई बागान नहीं होता,
जीत का रस्ता कभी आसान नहीं होता ||