मन के भाव - हिंदी काव्य संकलन Mann ke Bhaav : Hindi Kavita
एक आम भारतीय क्या सोचता है? क्या अनुभव करता है? उसके विचारों की सरिता का उद्गम किस पर्वतमाला से होता है और यह प्रवाह अंत में किस सागर को अलंकृत करता है?
मन के भाव उन्हीं विचारों को, स्वप्नों को, आशाओं निराशाओं को, संघर्षों सफलताओं को, दिन-प्रतिदिन की विपदाओं को, शब्दों की सहायता से चंद पंक्तियों में प्रकट करने का प्रयत्न करता है | यह उत्कृष्ट एवं नई कविताओं का संकलन है | इस ब्लॉग के माध्यम से मैं हिंदी काव्य को बढ़ावा देने और हिंदी साहित्य में नगण्य सा योगदान देने की भी चेष्टा करता हूँ |
जून 29, 2022
उदयपुर के कन्हैयालाल जी को श्रद्धांजलि
जून 27, 2022
बरसात की इक रात
बरसात की इस रात में हम आपका इंतज़ार करते हैं,
आपकी याद में दोस्तों से तकरार करते हैं,
तुम हमारी थी, हमारी हो, हमारी ही रहोगी,
पर हमें पता है, यह तुम कभी ना कहोगी,
इस दर्द भरी दुनिया में तुम्हारा साथ चाहते हैं,
पर ज़रूरत पड़ने पर खुद को अकेला ही पाते हैं,
दिल चीर के देख लो तुम्हारा नाम लिखा है,
प्यार क्या होता है तुमसे ही सीखा है,
हमारे दिल का हाल तुम नहीं जानती हो,
हमें सिर्फ़ हमारे चेहरे से पहचानती हो,
बरसात की इस रात में आज हम इकरार करते हैं,
हम कबूलते हैं कि हम तुमसे प्यार करते हैं,
हम कबूलते हैं कि हम तुमसे प्यार करते हैं ||
जून 21, 2022
जून 19, 2022
ये साली ज़िंदगी !
अथाह अगाध सागर जैसी,
है ये साली ज़िंदगी !
पहला जनम दूजा तट मृत्यु,
यात्रा भारी ज़िंदगी !
ज़िन्दों का उपहास करती,
है ये साली ज़िंदगी !
कष्टों के लवण से परिपूर्ण,
जलधि खारी ज़िंदगी !
बूँदों में सुख को टपकाती,
है ये साली ज़िंदगी !
निकट पहुँचते ही उड़ जाती,
बूँदें, सारी ज़िंदगी !
जून 10, 2022
कुहासा
कोहरे की मोटी चादर में,
दुबका-सिमटा सारा परिवेश,
ना गोचर है मार्ग-मंज़िल,
बस तृष्णा ही बाकी है शेष |
भरता हूँ डग अटकल करते,
पथ पर कंटक-कंकड़ या घास ?
मन में है भटकाव का भय,
और धुंध के छँटने की आस |
भाग्य रवि फ़िर दमकेगा,
ओझल फ़िर होगा कुहासा,
तब तक बढ़ता धीरे-धीरे,
जीवनपथ पर मैं तन्हा सा ||
जून 04, 2022
मध्यमवर्गीय परिवार
मध्यमवर्गीय परिवार,
कूलर एक व्यक्ति चार,
दो कमरे का घरबार,
दाल रोटी और अचार,
कष्टों की है भरमार,
करते ना कभी इज़हार,
जुगाड़ में हैं बड़े होशियार,
सीमित साधन एवं विचार,
पड़ोसियों से है व्यवहार,
कानाफूसी और चटकार,
दो पहियों पर संसार,
छुट्टी बीते सपरिवार,
चाहते हैं छोटी सी कार,
धन के आगे हैं लाचार,
आँखों में सपने हज़ार,
पूरा करना बजट के बाहर,
सहते हैं महँगाई की मार,
सुनती ना इनकी सरकार,
सेल का रहता इंतज़ार,
मोल-भाव करते हर बार,
राशन की लम्बी कतार,
मुफ़्त धनिया है अधिकार,
संभाल के रखते हैं अखबार,
बाद में बिकता बन भंगार,
मेहनत का हैं भण्डार,
किस्मत की रहती दरकार,
पुरखों का करते सत्कार,
बच्चों में है शिष्टाचार,
समझौते जीवन का सार,
इच्छापूर्ति है दुष्वार,
परिवार में परस्पर प्यार,
छोटी-छोटी खुशियाँ अपार ||
मई 28, 2022
गर्मी का Lockdown
सड़कें सारी कोरी हैं, घर में भी तुम झुलसाते हो,
दिन तक तो ठीक है, रातों को भी गरमाते हो,
कोरोना अब कम है, फ़िर भी Lockdown लगवाते हो,
सूरज दादा बोलो तुम, सर्दी में क्यों नहीं आते हो ??
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