एक आम भारतीय क्या सोचता है? क्या अनुभव करता है? उसके विचारों की सरिता का उद्गम किस पर्वतमाला से होता है और यह प्रवाह अंत में किस सागर को अलंकृत करता है?
मन के भाव उन्हीं विचारों को, स्वप्नों को, आशाओं निराशाओं को, संघर्षों सफलताओं को, दिन-प्रतिदिन की विपदाओं को, शब्दों की सहायता से चंद पंक्तियों में प्रकट करने का प्रयत्न करता है | यह उत्कृष्ट एवं नई कविताओं का संकलन है | इस ब्लॉग के माध्यम से मैं हिंदी काव्य को बढ़ावा देने और हिंदी साहित्य में नगण्य सा योगदान देने की भी चेष्टा करता हूँ |
जनवरी 29, 2020
जनवरी 26, 2020
गणतंत्र दिवस परेड
राजभवन से चला काफ़िला,
जनप्रतिनिधियों को लेकर,
चला वहाँ जहाँ जलती है,
अजर अमर नित्य एक ज्वाला,
जहाँ जीवंत हो उठती है,
वीरों की अगणित गाथा |
शीश झुकाकर किया नमन,
याद किया कुर्बानियों को,
माताओं के बलिदानों को,
यतीमों के रुदानों को,
रणबाँकुरे सेनानियों की स्मृति में,
झुक गया हर शीश हर माथा |
देखो फहराया गया तिरंगा,
गूँज उठा है राष्ट्रगान,
खड़े हुए हैं चहुँ ओर दर्शक,
देने तिरंगे को सम्मान,
गूँज उठी हैं 21 तोपें,
जैसे सिंह वन में गर्जाता |
हुआ शूरवीरों का सम्मान,
कईयों का जीते-जी कुछ का मरणोपरांत,
पर जीवित रहता है इनसे ही,
हम देशवासियों का अभिमान,
जीवित रहेंगे ये वीर भी तब तक,
जब तक इनकी वीरगाथा जन-जन है सुनाता |
देखो देखो सेना आई,
सैन्यशक्ति पथ पर दर्शायी,
थल-जल-वायु का यह मेला,
जन-जन का वक्ष गर्व से सुजाता,
पर चार चाँद लगाने इस दल को,
देखो ऊंटों का दस्ता आता |
सजी झांकियां सजे बहु जन हैं,
हुआ इनपर व्यय बहु धन है,
फिर भी लूटा इनने सबका मन है,
शोभायमान इन झांकियों से,
राजपथ पर बस इक दिन,
संपूर्ण भारतवर्ष है छा जाता |
देखो वीर बालक आए,
गजराज पथ पर हैं छाए,
कुछ साहसी मानवों ने,
मोटर-साइकिल पर करतब दिखाए,
गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर,
गौरवान्वित होती भारतमाता ||
जनवरी 24, 2020
उफ़ यह अदा
लचकाती कमर,
मृगनयनी नयन,
झूलती लटें,
सकुचाता बदन |
प्यासे अधर,
लल्साती मुस्कान,
सुशोभित हैं तन पर,
कौमार्य के सारे वरदान |
उफ़ यह अदा,
उफ़ यह बदन,
चाहे मेरा दिल,
पाना तेरी छुअन ||
जनवरी 20, 2020
माया
धन की क्या आवश्यकता है? धन सिर्फ एक छलावा है | मोह है | माया है | सत्य की परछाईं मात्र है, जो सिर्फ अंधकार में दिखाई पड़ती है | उजाले में इसका कोई अस्तित्व नहीं | धन सब परेशानियों की जड़ है | सब अपराधों की जननी है | सब व्यसनों का आरम्भ है |
कुदरत ने सब जीव बनाए,
पशु पक्षी मत्स्य तरु,
जल भूमि गिरी आकाश,
कंद मूल फल फूल खिलाए,
अंधकार से दिया प्रकाश ||
पर मनुष्य, तूने क्या दिया?
लोभ मोह दंभ अहंकार,
भेदभाव ऊँच-नीच तकरार !
धन को सर्वोपरि बनाया,
धनी निर्धन में भेद कराया,
माया के इस पाश में फंसकर,
कुदरत को तू समझ न पाया ||
जनवरी 19, 2020
जीवन
जी ना चाहे जीना,
पर जीवन पड़ेगा जीना,
जीवन एक इंतज़ार है,
मृत्यु सत्य साकार है,
उस दिन का इंतज़ार है,
जब चढूँगा मौत का जीना ||
जनवरी 17, 2020
प्रेम
प्रेम से आनंद है,
प्रेम से ही है खुशी,
प्रेम से जीवन है,
प्रेम से है सुख की हंसी |
प्रेम नहीं तो क्या है,
क्रोध स्वार्थ अहंकार,
गर प्रेम मिट जाए कहीं,
तो छा जाता है अंधकार |
तू प्रेम भाव से देख ले,
तो छा जाती है रौशनी,
तू प्रेम भाव से बोल दे,
तो मिट जाए सारे गुबार ||
सदस्यता लें
संदेश (Atom)