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जून 18, 2021
जून 13, 2021
अधूरा प्यार
लब पर तेरे मेरा नाम नहीं आता है,
जो मैं पुकारूँ फिर भी तेरा पैगाम नहीं आता है,
जग के समक्ष मुझको तू जब-जब बदनाम करती है,
जानता हूँ दिल-ही-दिल में आह भरती है,
दस्तूर दुनिया का बदल सकते नहीं हैं हम,
इक-दूजे संग चाहकर भी जी सकते नहीं हैं हम ||
मई 09, 2021
ऐसी मेरी जननी थी
मुझको भरपेट खिलाकर,
वो खुद भूखी रह लेती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
मेरी तकलीफ़ मिटाकर,
खुद दर्द वो सह लेती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
अपनी ख्वाहिश दबाकर,
ज़िद मेरी पूरी करती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
मेरी मासूम भूलों को,
वो अपने सर मढ़ लेती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
गर कीटों से मैं डर जाऊं,
झाड़ू उनपर धर देती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
मेरी हल्के से ज्वर पर भी,
सारी रात जग लेती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
रुग्णावस्था में बेदम भी,
मुझको गोदी भर लेती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
अपने आँचल के कोने से,
मेरे सब गम हर लेती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
मेरी बदतमीज़ी पर वो,
भर-भर कर मुझको धोती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
गर पढ़ते-पढ़ते सुस्ताऊं,
वो दो कस के धर देती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
मुझको थप्पड़ मारकर,
खुद चुपके से रो लेती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
बाहर के लोगों से मेरी,
गलती पर भी लड़ लेती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
मेरे खोए सामान को,
वो चुटकी में ला कर देती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
आने वाले कल की ख़ातिर,
दूरी मुझसे सह लेती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
तू जमकर बस पढ़ाई कर,
चिठ्ठी उसकी यह कहती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
छुट्टी में घर जाने पर वो,
मेरी खिदमत में रहती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
मेरी बातों के फेर में,
वो बस यूँ ही बह लेती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
मेरी शादी से भी पहले,
कपड़े नन्हे बुन लेती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
मृत्युशय्या पर होकर भी,
मुझको हँसने को कहती थी,
ऐसी मेरी जननी थी |
उसके जाने के बाद भी,
उसकी ज़रूरत रहती है,
ऐसी मेरी जननी थी ||
मार्च 21, 2021
नुक्कड़
गली के नुक्कड़ पर रोज़,
उनके रूबरू आता हूँ |
फासले इतने हैं मगर ,
कुछ भी कह ना पाता हूँ ||
फ़रवरी 18, 2021
टूटा दिल
गलती मेरी थी जो मैंने तुझसे कुछ उम्मीद की,
उसको पूरा करने की तुझसे मैंने ताकीद की ||
फ़रवरी 14, 2021
शुभ वैलेंटाइन्स दिवस
मैं नदी हूँ, तू सागर है |
मैं प्यासा हूँ, तू सावन है |
मैं भँवरा हूँ, तू उपवन है |
मैं विषधर हूँ, तू चन्दन है |
मैं पतंग हूँ, तू पवन है |
मैं फिज़ा हूँ, तू गगन है |
मैं सुबह हूँ, तू दिनकर है |
मैं निशा हूँ, तू पूनम है |
मैं रुग्ण हूँ, तू औषध है |
मैं बेघर हूँ, तू भवन है |
मैं शिशु हूँ, तू दामन है |
मैं देह हूँ, तू श्वसन है |
मैं भक्त हूँ, तू भगवन है |
मैं हृदय हूँ, तू धड़कन है ||
नवंबर 23, 2020
कविता क्या है ?
दिनकर के वंदन में कलरव,
पवन के झोंके में पल्लव,
पुष्पों पर भँवरों का गुंजन,
नभ पर मेघों का गर्जन |
वन में कुलाँचते सारंग,
अम्बर पर अलंकृत सतरंग,
सागर की लहरों की तरंग,
उत्सव में बजता मृदंग |
पन्ने पर लिखा कोई गीत,
कर्णप्रिय मधुरम संगीत,
जीवन का हर वो पल,
जो बीते संग मनमीत ||
नवंबर 04, 2020
करवाचौथ
माथे पर गुलाबी रेखा,
तन पर लहंगा है लाल,
मन में अपने पिया की,
लम्बी आयु का ख्याल |
अपने कठोर तप के फ़ल में,
जन्म-जन्मांतर का बंधन माँग,
व्याकुल है अपने चाँद संग,
करने को दीदार-ए-चाँद ||
अक्टूबर 21, 2020
कुछ अधूरी ख्वाहिशें
वो चेहरा एक सलोना सा,
जो ख़्वाबों में, विचारों में,
अक्सर ज़ाहिर हो जाता है |
जिसको चाहा है उम्रभर,
उसकी यादों के भंवर में,
मन मेरा बस खो जाता है ||
वो शौक एक अनूठा सा,
जिसमें बीता हर इक पल,
मेरे तन-मन को भाता है |
रोज़ी-रोटी के फेर में,
बरबस बीते यह ज़िंदगी,
वक्त थोड़ा मिल ना पाता है ||
वो दामन एक न्यारा सा,
जो बचपन की हर कठिनाई,
का अक्षुण्ण हल कहलाता है |
बेवक्त छूटा था वह साथ,
कह ना पाया था मैं जो बात,
कहने को दिल ललचाता है ||
वो स्वप्न एक प्यारा सा,
जो मन की गहराइयों में,
स्थाई स्थान बनाता है |
भरसक प्रयत्न करके भी,
वह सपना यथार्थ में,
परिवर्तित हो ना पाता है |
वो शोक एक भारी सा,
रह-रहकर चित्त की देह को,
पश्चाताप की टीस चुभोता है |
पृथ्वी की चाल, बहती पवन,
शब्दों के बाण, बीता कल,
पलटना किसको आता है ??
वो भाग्य एक कठोर सा,
कर्मठ मानव के कर्म का,
फल देने से कतराता है |
अपेक्षाओं के ख़ुमार में,
माया के अद्भुत खेल में,
मूर्छित मानव मुस्काता है ||
फ़रवरी 17, 2020
कौन हो तुम?
तेरी मुस्कान से है मेरी खुशी,
तेरे आँसुओं से मेरे गम,
तेरी हँसी के लिए मैं दे दूँ जां,
तेरे क्रोध से निकले मेरा दम |
कौन हो तुम?
तू शीतल वायु का झोंखा है,
तू टिप-टिप बूंदों की तरंग,
तू भोर की पहली किरण है,
तू इन्द्रधनुष के सातों रंग |
कौन हो तुम?
तू हिरणी सी चपल है,
तू मत्स्य सी नयनों वाली,
तेरी वाणी भी मधुरम है,
जैसे बसंत की वसुंधरा पे,
कोयल कूके हर डाली |
कौन हो तुम?
तू मेरी अन्नपूर्णा,
तू मेरे घर की लक्ष्मी,
तेरा क्रोध काली जैसा,
तू अम्बे तारने वाली |
कौन हो तुम?
मेरे जीवन का सार,
मेरे जीवन की परिभाषा,
तू मेरी अभिलाषा है,
मेरे जीने की अकेली आशा ||
फ़रवरी 12, 2020
खुशी क्या है?
खुशी क्या है?
एक भावना, एक जज़्बात |
सूर्य की किरणों में,
चाँद की शीतलता में,
चिड़ियों की चहचहाट में,
सावन की बरसात में |
किसीकी मुस्कान में छुपी,
किन्ही आँखों में बसी,
कहीं होठों पे खिली,
कभी फूलों से मिली |
मेहनत में कामयाबी में,
गुलामी से आज़ादी में,
हार के बाद जीत में,
जीवन की हर रीत में |
कभी मीठी-मीठी बातों में,
कहीं छुप-छुप के मुलाकातों में,
कभी यारों की बारातों में,
कभी संगी संग रातों में |
पर मेरी खुशी?
तेरा साथ निभाने में,
तेरा हाथ बंटाने में,
बच्चे को खिलाने में,
कभी-कभी गुदगुदाने में,
मेरा जितना भी वक्त है,
तुम दोनों संग बिताने में ||
फ़रवरी 08, 2020
सुहागरात
कजरारे नयनों वाली,
होठों पर गहरी लाली,
माथे पर सिन्दूरी टीका,
कानों में पहने बाली ।
शर्मीले नयनों वाली,
अधरों पर संकुचित वाणी,
श्वास में भय का डेरा,
मन सोचे क्या होगा तेरा,
कर में है दूध का प्याला,
थम-थम कर बढ़ने वाली ।
प्यासे नयनों वाली,
लब पर गहराई लाली,
प्याला अब ख़ाली पड़ा है,
तकिया भी नीचे गिरा है,
श्वासों में तेज़ी बड़ी है,
पिया से मिलन की घड़ी है,
पिया के साथ की खातिर,
धन-मन-तन लुटाने वाली ।।
जनवरी 29, 2020
बचपन
मासूम चेहरा मुलायम गाल,
छोटी-छोटी आँखें उलझे बाल,
नन्ही उंगलियाँ छोटी सी हथेली,
नन्हे-नन्हे पैर मस्तानी चाल |
कभी करे प्यार कभी मुस्काए,
कभी तो रूठ के दूर भाग जाए,
कभी माँगे मीठा कभी खिलौना,
कभी मेरी गोदी में समाए |
अद्भुत अनोखा चंचल बचपन,
सुख के रंगों में रंगा यह जीवन,
माँ-बाप की आँखों का तारा,
बालक मेरा सबसे प्यारा ||
जनवरी 24, 2020
उफ़ यह अदा
लचकाती कमर,
मृगनयनी नयन,
झूलती लटें,
सकुचाता बदन |
प्यासे अधर,
लल्साती मुस्कान,
सुशोभित हैं तन पर,
कौमार्य के सारे वरदान |
उफ़ यह अदा,
उफ़ यह बदन,
चाहे मेरा दिल,
पाना तेरी छुअन ||
जनवरी 17, 2020
प्रेम
प्रेम से आनंद है,
प्रेम से ही है खुशी,
प्रेम से जीवन है,
प्रेम से है सुख की हंसी |
प्रेम नहीं तो क्या है,
क्रोध स्वार्थ अहंकार,
गर प्रेम मिट जाए कहीं,
तो छा जाता है अंधकार |
तू प्रेम भाव से देख ले,
तो छा जाती है रौशनी,
तू प्रेम भाव से बोल दे,
तो मिट जाए सारे गुबार ||
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