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जून 25, 2021
बुझने से पहले ज्वाला भड़के
जून 18, 2021
मुझको मंज़ूर नहीं
धन के बल पर ग्रह का दोहन,
और अतिरेक मानवों का शोषण,
जन से जन का यह विभाजन,
मुझको मंज़ूर नहीं |
बढ़ना जीवनपथ पर तनहा,
परस्पर बैरी, कटुता, घृणा,
मन से मन का यह विभाजन,
मुझको मंज़ूर नहीं |
इकतरफ़ा चाहत की सनक,
अप्राप्य को पाने की तड़प,
सच से मन का यह विभाजन,
मुझको मंज़ूर नहीं |
कट्टरता का विषपूर्ण भुजंग,
अपने ही मत में मदहोश मलंग,
बुद्धि से नर का यह विभाजन,
मुझको मंज़ूर नहीं |
स्त्री की इच्छाओं का दमन,
पुरुष का नाजायज़ अहम,
नर से नारी का यह विभाजन,
मुझको मंज़ूर नहीं |
अलग ही दुनिया में जीना,
संग होकर संग में ना होना,
तुम से मेरा यह विभाजन,
मुझको मंज़ूर नहीं ||
जून 13, 2021
अधूरा प्यार
लब पर तेरे मेरा नाम नहीं आता है,
जो मैं पुकारूँ फिर भी तेरा पैगाम नहीं आता है,
जग के समक्ष मुझको तू जब-जब बदनाम करती है,
जानता हूँ दिल-ही-दिल में आह भरती है,
दस्तूर दुनिया का बदल सकते नहीं हैं हम,
इक-दूजे संग चाहकर भी जी सकते नहीं हैं हम ||
जून 07, 2021
अल्पविराम,
वक्त के पहियों से भी गतिमान थी ज़िंदगी,
वक्त की भांति ही सतत चलायमान थी ज़िंदगी,
वक्त के पहिये ने रुख ऐसा अपना मोड़ लिया,
रैन के उपरांत सूरज ने निकलना छोड़ दिया,
कष्टों के सैलाब में इंसान मानो बह गया,
जो जहाँ था वो वहीँ पर बस, रह गया,
आस है तम को भेदती फिर घाम हो,
पूर्ण नहीं ये जीवन का बस एक अल्पविराम हो ||
जून 02, 2021
क्षणभंगुर प्रत्येक तमाशा है
जब नभ पर बहता बादल भी,
बरखा बनकर ढह जाता है,
जब दिनभर जलता दिनकर भी,
संध्या होते ढल जाता है,
जब विध्वंसक सैलाब भी,
साहिल तक फिर थम जाता है,
जब दीनहीन कोई रंक भी,
श्रम से राजा बन जाता है,
जब निर्बल नश्वर हर इक जीव,
कालान्तर में मर जाता है |
तो चहुँ ओर तम को पाकर,
तू व्यर्थ क्यों घबराता है ?
और सुख-समृद्धि से तर हो,
दंभी कैसे बन जाता है?
अपने प्रियजन को खोकर,
शोकाकुल क्यों हो जाता है?
सतत अटूट सत्य परिवर्तन,
स्थिरता सिर्फ़ छलावा है,
चिरकालीन यहाँ कुछ भी नहीं,
क्षणभंगुर प्रत्येक तमाशा है ||
मई 27, 2021
कतार
फल-सब्ज़ी और राशन की खातिर मारा-मार है,
सब व्यवसाय ठप, केवल इनमें ही व्यापार है,
प्राणों को वायु नहीं, प्राणवायु की दरकार है,
सिलेण्डर अब अलग है, पर लगती वही कतार है,
अस्पतालों पर पीड़ित रुग्णों का प्रचंड भार है,
दवा तो मिलती नहीं, दारू की भरमार है,
ज़िंदों की तो छोड़ो, मुर्दों में भी तकरार है,
श्मशानों में भी लगती, लंबी-लंबी कतार है ||
मई 23, 2021
ए माया ! तू क्या करती है ?
ए माया ! तू क्या करती है ?
सुख के लम्हों को हरती है,
पुलकित मन में गम भरती है,
माथे की लाली हरती है,
भरी कोख सूनी करती है,
पालक का साया हरती है,
जीते-जी मुर्दा करती है,
अल्पायु में प्राण हरती है,
ए माया ! तू क्या करती है ?
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