जून 02, 2021

क्षणभंगुर प्रत्येक तमाशा है

हिंदी कविता Hindi Kavita क्षणभंगुर प्रत्येक तमाशा है Kshanbhangur pratyek tamaasha hai

जब नभ पर बहता बादल भी,


बरखा बनकर ढह जाता है,


जब दिनभर जलता दिनकर भी,


संध्या होते ढल जाता है,


जब विध्वंसक सैलाब भी,


साहिल तक फिर थम जाता है,


जब दीनहीन कोई रंक भी,


श्रम से राजा बन जाता है,


जब निर्बल नश्वर हर इक जीव,


कालान्तर में मर जाता है |



तो चहुँ ओर तम को पाकर,


तू व्यर्थ क्यों घबराता है ?


और सुख-समृद्धि से तर हो,


दंभी कैसे बन जाता है?


अपने प्रियजन को खोकर,


शोकाकुल क्यों हो जाता है?


सतत अटूट सत्य परिवर्तन,


स्थिरता सिर्फ़ छलावा है,


चिरकालीन यहाँ कुछ भी नहीं,


क्षणभंगुर प्रत्येक तमाशा है ||

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