जून 07, 2021

अल्पविराम,

हिंदी कविता Hindi Kavita अल्पविराम Alpviram

वक्त के पहियों से भी गतिमान थी ज़िंदगी,


वक्त की भांति ही सतत चलायमान थी ज़िंदगी,


वक्त के पहिये ने रुख ऐसा अपना मोड़ लिया,


रैन के उपरांत सूरज ने निकलना छोड़ दिया,


कष्टों के सैलाब में इंसान मानो बह गया,


जो जहाँ था वो वहीँ पर बस, रह गया,


आस है तम को भेदती फिर घाम हो,


पूर्ण नहीं ये जीवन का बस एक अल्पविराम हो ||

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

राम आए हैं