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अगस्त 08, 2021

मिल्खा सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि

हिंदी कविता Hindi Kavita मिल्खा सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि Milkha Singh ko sacchi Shradhanjali

मिल्खा सिंह जी को कल गए हुए पूरे पचास दिन हो गए | नीरज चोपड़ा ने कल उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी, उनका स्वप्न पूरा करके | नीरज की उपलब्धि एवं मिल्खा जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कुछ पंक्तियाँ -


कमल (नीरज) खिला है आज ओलिंपिक के मैदान में,


मिल्खा झूम रहे होंगे उस पार उस जहान में ||



काश मिल्खा कुछ दिन और जी लेते,


जीते जी अपने सपने को जी लेते ||

जुलाई 17, 2021

लालबत्ती

हिंदी कविता Hindi Kavita लालबत्ती Laalbatti

अपनी मोटर के कोमल गद्देदार सिंहासन पर,


शीतल वायु के झोकों में अहम से विराजकर,


खिड़की के बाहर तपती-चुभती धूप में झाँककर,


मैंने एक नन्हे से बालक को अपनी ओर आते देखा |



पैरों में टूटी चप्पल थी तन पर चिथड़ों के अवशेष,


मस्तक पर असंख्य बूँदें थीं लब पर दरारों के संकेत,


उसके हाथों में एक मोटे-लंबे से बाँस पर,


मैंने सतरंगी गुब्बारों को पवन में लहराते देखा |



मेरी मोटर की खिड़की से अंदर को झाँककर,


मेरी संतति की आँखों में लोभ को भाँपकर,


आशा से मेरी खिड़की पर ऊँगली से मारकर,


उसके अधरों की दरारों को मैंने गहराते देखा |



कष्टों से दूर अपनी माता के दामन को थामकर,


अपने बाबा के हाथों से एक फुग्गे को छीनकर,


जीवन को गुड्डे-गुड़ियों का खेल भर मानकर,


अपने बच्चे के चेहरे पर खुशियों को मंडराते देखा |



चंद सिक्कों को अपनी छोटी सी झोली में बाँधकर,


खुद खेलने की उम्र में पूरे कुनबे को पालकर,


दरिद्रता के अभिशाप से बचपन को ना जानकर,


अपने बीते कल को अगली मोटर तक जाते देखा ||

जून 29, 2021

बचपन

हिंदी कविता Hindi Kavita बचपन Bachpan

वो बेफिक्री, वो मस्ती और वो नादानी,


वो शेरों की चिड़ियों-परियों की कहानी,


वो सड़कों पर कल-कल बहता बरखा का पानी,


उसमें तैराने को कागज़ की कश्ती बनानी,


वो चुपके से पैसे देती दादी-नानी,


वो आँचल की गहरी निद्रा सुहानी,


वो यारों संग धूप में साईकिल दौड़ानी,


वो बागों में मटरगश्ती और शैतानी,


वो दौर था जब खुशियों की सीमाएं थीं अनजानी,


वो दौर था जब हमने जग की सच्चाईयाँ थीं ना जानी,


ये कैसा एकांत लेकर आई है जवानी,


इससे तो बेहतर थी बचपन की नादानी ||

जून 07, 2021

अल्पविराम,

हिंदी कविता Hindi Kavita अल्पविराम Alpviram

वक्त के पहियों से भी गतिमान थी ज़िंदगी,


वक्त की भांति ही सतत चलायमान थी ज़िंदगी,


वक्त के पहिये ने रुख ऐसा अपना मोड़ लिया,


रैन के उपरांत सूरज ने निकलना छोड़ दिया,


कष्टों के सैलाब में इंसान मानो बह गया,


जो जहाँ था वो वहीँ पर बस, रह गया,


आस है तम को भेदती फिर घाम हो,


पूर्ण नहीं ये जीवन का बस एक अल्पविराम हो ||

मई 17, 2021

बहते-बहते एकाएक वक़्त कितना बदल जाता है

हिंदी कविता Hindi Kavita बहते-बहते एकाएक वक़्त कितना बदल जाता है Behte-behte ekaaek waqt kitna badal jaata hai

सुसज्जित जिन बाजारों में,


गलियों में और चौबारों में,


बहती थी जीवन की धारा,


रहता अस्पष्ट सा एक शोर,


बसता था मानव का मेला,


क्रय-विक्रय की बेजोड़ होड़ |


वहाँ पसरा अब सन्नाटा है,


दहशत से कोई ना आता है,


अपने ही घर में हर कोई,


खुद को बंदी अब पाता है,


बहते-बहते एकाएक,


वक़्त कितना बदल जाता है |



वीरान उन मैदानों में,


कब्रिस्तानों में श्मशानों में,


एकाध ही दिन में आता था,


संग अपने समूह लाता था,


विस्तृत विभिन्न रीतियों से,


माटी में वह मिल जाता था |


वहाँ मृतकों का अब तांता है,


संबंधी संग ना आता है,


अंतिम क्षणों में भी देह,


समुचित सम्मान ना पाता है,


बहते-बहते एकाएक,


वक़्त कितना बदल जाता है |



शहर के उन बागानों में,


युगलों की पनाहगाहों में,


जहाँ चलते थे बल्ला और गेंद,


सजती थी यारों की महफ़िल,


खिलते थे विविधाकर्षक फ़ूल ,


जो थे सप्ताहांत की मंज़िल |


वहाँ सजती अब चिताएँ हैं,


मरघट बनी वाटिकाएँ हैं,


अस्थि के फूलों को चुनकर,


कलशों में समेटा जाता है,


बहते-बहते एकाएक,


वक़्त कितना बदल जाता है |



आधुनिक दवाखानों में,


खूब चलती उन दुकानों में,


रोगों के भिन्न प्रकार थे,


उतने ही अलग उपचार थे,


आशा से रोगी जाता था,


अक्सर ठीक होकर आता था |


वहाँ बस अब एक ही रोग है,


जिसका ना कोई तोड़ है,


उखड़ती साँसों से बोझिल,


स्थापित तंत्र लड़खड़ाता है,


बहते-बहते एकाएक,


वक़्त कितना बदल जाता है |



कोलाहली कारखानों में,


व्यवसायिक प्रतिष्ठानों में,


दूरस्थ स्थानों के बाशिंदे,


करते थे श्रम दिन और रात,


रहता था मस्तक पर पसीना,


मन में सुखमय जीवन की आस |


वहाँ उड़ती अब धूल है,


मरना किसको कबूल है,


नगरों से वापस अपने गाँव,


पैदल ही जत्था जाता है,


बहते-बहते एकाएक,


वक़्त कितना बदल जाता है |



टूटी-फूटी उन सड़कों पर,


गुफा समतुल्य गड्ढों पर,


चलते थे वाहन कई प्रकार,


रहती थी दिनभर भीड़-भाड़,


इक-दूजे से आगे होने में,


होती थी अक्सर तकरार |


वो सड़कें सारी कोरी हैं,


ना वाहन है ना बटोही है,


अब अक्सर उन मार्गों पर,


रसायन छिड़का जाता है,


बहते-बहते एकाएक,


वक़्त कितना बदल जाता है |



विद्या के उन संस्थानों में,


शिक्षण प्रतिष्ठानों में,


जहाँ हरदम चहकते चेहरे थे,


दोस्ती के रिश्ते गहरे थे,


शिक्षा का प्रसाद मिलता था,


कलियों से फूल खिलता था |


वहाँ लटका अब ताला है,


ना कोई पढ़नेवाला है,


ज्ञान के अनुयायियों का,


दूभर-दुष्कर हर रास्ता है,


बहते-बहते एकाएक,


वक़्त कितना बदल जाता है |



छोटे-बड़े परिवारों में,


घरों में, त्योहारों में,


लोगों का आना-जाना था,


मिलने का सदा बहाना था,


सुख-दुःख के सब साथी थे,


हर मोड़ पर साथ निभाते थे |


अब सब घरों में बंद हैं,


ना मिलते हैं, ना संग हैं,


घर ही दफ़्तर कहलाता है,


कोई कहीं ना जाता है,


बहते-बहते एकाएक,


वक़्त कितना बदल जाता है ||

मई 09, 2021

ऐसी मेरी जननी थी

हिंदी कविता Hindi Kavita ऐसी मेरी जननी थी Aisi meri Janni thi

मुझको भरपेट खिलाकर,


वो खुद भूखी रह लेती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



मेरी तकलीफ़ मिटाकर,


खुद दर्द वो सह लेती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



अपनी ख्वाहिश दबाकर,


ज़िद मेरी पूरी करती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



मेरी मासूम भूलों को,


वो अपने सर मढ़ लेती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



गर कीटों से मैं डर जाऊं,


झाड़ू उनपर धर देती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



मेरी हल्के से ज्वर पर भी,


सारी रात जग लेती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



रुग्णावस्था में बेदम भी,


मुझको गोदी भर लेती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



अपने आँचल के कोने से,


मेरे सब गम हर लेती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



मेरी बदतमीज़ी पर वो,


भर-भर कर मुझको धोती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



गर पढ़ते-पढ़ते सुस्ताऊं,


वो दो कस के धर देती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



मुझको थप्पड़ मारकर,


खुद चुपके से रो लेती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



बाहर के लोगों से मेरी,


गलती पर भी लड़ लेती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



मेरे खोए सामान को,


वो चुटकी में ला कर देती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



आने वाले कल की ख़ातिर,


दूरी मुझसे सह लेती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



तू जमकर बस पढ़ाई कर,


चिठ्ठी उसकी यह कहती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



छुट्टी में घर जाने पर वो,


मेरी खिदमत में रहती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



मेरी बातों के फेर में,


वो बस यूँ ही बह लेती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



मेरी शादी से भी पहले,


कपड़े नन्हे बुन लेती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



मृत्युशय्या पर होकर भी,


मुझको हँसने को कहती थी,


ऐसी मेरी जननी थी |



उसके जाने के बाद भी,


उसकी ज़रूरत रहती है,


ऐसी मेरी जननी थी ||

मार्च 14, 2021

मैं हँसना भूल गया

हिंदी कविता Hindi Kavita मैं हँसना भूल गया Main hasna bhool gaya

जब बचपन के मेरे बंधु ने,


चिर विश्वास के तंतु ने,


पीछे से खंजर मार कर,


मेरा भरोसा तोड़ दिया,


मैं हँसना भूल गया |



जब मेरे दफ़्तर में ऊँचे,


पद पर आसीन साहब ने,


मेरे श्रम को अनदेखा कर,


चमचों से नाता जोड़ लिया,


मैं हँसना भूल गया |



जब जन्मों के मेरे साथी ने,


सुख और दुःख के हमराही ने,


दुःख के लम्हों को आता देख,


साथ निभाना छोड़ दिया,


मैं हँसना भूल गया |



जब वर्षों तक सींचे पौधे ने,


उस मेरे अपने बालक ने,


छोटी-छोटी सी बातों पर,


मेरा भर-भर अपमान किया,


मैं हँसना भूल गया |



जिसकी गोदी में रहता था,


जब उस प्यारे से चेहरे ने,


मेरी लाई साड़ी को छोड़,


श्वेत कफ़न ओढ़ लिया,


मैं हँसना भूल गया |



जब मंज़िल की ओर अग्रसर,


पहले से मुश्किल राहों को,


नियति की कुटिल चाल ने,


हर-हर बार मरोड़ दिया,


मैं हँसना भूल गया |

नवंबर 06, 2020

मेरे पास समय नहीं है

हिंदी कविता Hindi Kavita मेरे पास समय नहीं है Mere pass samay nahin hai

वो गर्मी की छुट्टियों में मेरा,


नाना-नानी के घर पर जाना,


वो मामा का अपार गुस्सा,


मामी संग जम कर बतियाना,


वो चाचा की शादी पर मेरा,


घोड़ी चढ़कर घबराना,


वो चाची की गोदी में मेरा,


सोने की ज़िद पर अड़ जाना |


बुआ का प्यार माँसी का दुलार,


भाई-बहन खेल-तकरार,


संगी-साथी बचपन के यार,


छोटे-बड़े सब नाते-रिश्तेदार,


याद सब है बस,


मिलने का, बतियाने का,


रूठने का, मनाने का,


मेरे पास समय नहीं है ||



वो कॉलेज की दीवार फाँद,


छुप-छुप के सिनेमाघर जाना,


वो लेक्चर बंक करके,


कैंटीन में गप्पें लड़ाना,


वो जन्मदिन के नाम पर,


बेचारे दोस्त के पैसे लुटाना,


वो अंतिम दिन इक-दूजे से,


फिर-फिर मिलने के वादे सुनाना |


पुराने दोस्त, करीबी यार,


जीवन का पहला-पहला प्यार,


खुशी के पल, गम के हालात,


हँसी-ठिठोले, पहली मुलाकात,


याद सब है बस,


मौज का, मस्ती का,


अल्हड़ मटरगश्ती का,


मेरे पास समय नहीं है ||



वो पहली किरण पर मेरा,


खुले मैदान में दौड़ लगाना,


वो साँझ के समय में,


रैकेट उठाकर खेलने जाना,


वो जागती आँखों से मेरा,


भविष्य के सपने सजाना,


वो दिन-दिनभर मोबाइल पर,


निरंतर वीडियो चलाना |


खेल-कूद गेंद और गिटार,


खुद कुछ कर दिखाने के विचार,


अधूरे ख़्वाब, दिल की चाह,


मन को भाति वो जीवनराह,


याद सब है बस,


सुख का, चैन का,


अपने लिए जीने का,


मेरे पास समय नहीं है ||

अक्तूबर 21, 2020

कुछ अधूरी ख्वाहिशें

हिंदी कविता Hindi Kavita कुछ अधूरी ख्वाहिशें Kuch Adhoori Khwahishein

वो चेहरा एक सलोना सा,


जो ख़्वाबों में, विचारों में,


अक्सर ज़ाहिर हो जाता है |


जिसको चाहा है उम्रभर,


उसकी यादों के भंवर में,


मन मेरा बस खो जाता है ||



वो शौक एक अनूठा सा,


जिसमें बीता हर इक पल,


मेरे तन-मन को भाता है |


रोज़ी-रोटी के फेर में,


बरबस बीते यह ज़िंदगी,


वक्त थोड़ा मिल ना पाता है ||



वो दामन एक न्यारा सा,


जो बचपन की हर कठिनाई,


का अक्षुण्ण हल कहलाता है |


बेवक्त छूटा था वह साथ,


कह ना पाया था मैं जो बात,


कहने को दिल ललचाता है ||



वो स्वप्न एक प्यारा सा,


जो मन की गहराइयों में,


स्थाई स्थान बनाता है |


भरसक प्रयत्न करके भी,


वह सपना यथार्थ में,


परिवर्तित हो ना पाता है |



वो शोक एक भारी सा,


रह-रहकर चित्त की देह को,


पश्चाताप की टीस चुभोता है |


पृथ्वी की चाल, बहती पवन,


शब्दों के बाण, बीता कल,


पलटना किसको आता है ??



वो भाग्य एक कठोर सा,


कर्मठ मानव के कर्म का,


फल देने से कतराता है |


अपेक्षाओं के ख़ुमार में,


माया के अद्भुत खेल में,


मूर्छित मानव मुस्काता है ||

राम आए हैं