अगस्त 08, 2021

मिल्खा सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि

हिंदी कविता Hindi Kavita मिल्खा सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि Milkha Singh ko sacchi Shradhanjali

मिल्खा सिंह जी को कल गए हुए पूरे पचास दिन हो गए | नीरज चोपड़ा ने कल उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दी, उनका स्वप्न पूरा करके | नीरज की उपलब्धि एवं मिल्खा जी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कुछ पंक्तियाँ -


कमल (नीरज) खिला है आज ओलिंपिक के मैदान में,


मिल्खा झूम रहे होंगे उस पार उस जहान में ||



काश मिल्खा कुछ दिन और जी लेते,


जीते जी अपने सपने को जी लेते ||

अगस्त 05, 2021

हॉकी में पदक पर बधाई

हिंदी कविता Hindi Kavita हॉकी में पदक पर बधाई Hockey mein padak par badhai

बहुत दिनों बाद ऐसी सुबह आई है,


ना रंज है, ना गम है, ना रुसवाई है,


जीत की कहानी हमने दोहराई है,


कांस्य पदक पर पूरे राष्ट्र को बधाई है ||

जुलाई 29, 2021

मैरी कॉम

हिंदी कविता Hindi Kavita मैरी कॉम Mary Kom

पराजित होने पर भी ऐसी मुस्कान कभी देखी है ?

हार-जीत में क्या रखा जीवन के अंग हैं,

प्रेरक तेरा जीवन है, तेरे हर रंग हैं ||



ओलिंपिक पदक विजेता एम. सी. मैरी कॉम को समर्पित |

जीवनयात्रा

हिंदी कविता Hindi Kavita जीवनयात्रा Jeevanyatra

पथ पर पग भरते-भरते,


यात्रा संग करते-करते,


आता है औचक एक मोड़,


देता है जत्थे को तोड़,


बंट जाती हैं राहें सबकी,


बढ़ते हमराही को छोड़,


गम की गठरी को ना ले चल,


सुख के पल यादों में जोड़,


गाथा नूतन तू लिखता चल,


हर इक रस्ते हर इक मोड़ ||

जुलाई 24, 2021

सोने का तमगा आएगा

हिंदी कविता Hindi Kavita सोने का तमगा आएगा Sone ka Tamga aayega

उगते सूरज की धरती पर तिरंगा लहराएगा,


राष्ट्रगान गूँजेगा, सोने का तमगा आएगा ||

जुलाई 20, 2021

पिंजरे का पंछी

हिंदी कविता Hindi Kavita पिंजरे का पंछी Pinjare ka Panchi

मैं बरखा की बूँदों सा बादलों में रहता हूँ,


पवन के झोकों में मैं मेघों की भांति बहता हूँ,


डैनों को अपने फैलाए नभ पर मैं विचरता हूँ,


मैं पिंजरे का पंछी नहीं आसमान की चिड़िया हूँ |



मैं जब जी चाहे सोता हूँ जब जी चाहे उठता हूँ,


घोंसले को संयम से तिनका-तिनका संजोता हूँ,


धन की ख़ातिर ना सुन्दर लम्हों की ख़ातिर जीता हूँ,


मैं पिंजरे का पंछी नहीं आसमान की चिड़िया हूँ |



पैरों में मेरे बेड़ी है पंखों पर कतरन के निशान,


जीवन में मेरे बाकी बस – बंदिश लाचारी और 

अपमान,


पिंजरे में कैद बेबस मैं सपना एकल बुनता हूँ,


मैं पिंजरे का पंछी नहीं आसमान की चिड़िया हूँ ||

जुलाई 17, 2021

लालबत्ती

हिंदी कविता Hindi Kavita लालबत्ती Laalbatti

अपनी मोटर के कोमल गद्देदार सिंहासन पर,


शीतल वायु के झोकों में अहम से विराजकर,


खिड़की के बाहर तपती-चुभती धूप में झाँककर,


मैंने एक नन्हे से बालक को अपनी ओर आते देखा |



पैरों में टूटी चप्पल थी तन पर चिथड़ों के अवशेष,


मस्तक पर असंख्य बूँदें थीं लब पर दरारों के संकेत,


उसके हाथों में एक मोटे-लंबे से बाँस पर,


मैंने सतरंगी गुब्बारों को पवन में लहराते देखा |



मेरी मोटर की खिड़की से अंदर को झाँककर,


मेरी संतति की आँखों में लोभ को भाँपकर,


आशा से मेरी खिड़की पर ऊँगली से मारकर,


उसके अधरों की दरारों को मैंने गहराते देखा |



कष्टों से दूर अपनी माता के दामन को थामकर,


अपने बाबा के हाथों से एक फुग्गे को छीनकर,


जीवन को गुड्डे-गुड़ियों का खेल भर मानकर,


अपने बच्चे के चेहरे पर खुशियों को मंडराते देखा |



चंद सिक्कों को अपनी छोटी सी झोली में बाँधकर,


खुद खेलने की उम्र में पूरे कुनबे को पालकर,


दरिद्रता के अभिशाप से बचपन को ना जानकर,


अपने बीते कल को अगली मोटर तक जाते देखा ||

राम आए हैं