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अप्रैल 22, 2021
अप्रैल 20, 2021
हारेंगे नहीं हम
मन में संकल्प ठान कर,
काटों को रस्ता मान कर,
बढ़ते जायेंगे हम,
हारेंगे नहीं हम |
इक पग को पीछे रखकर,
दो पग आगे सरककर,
भागेंगे तेज़ हम,
हारेंगे नहीं हम |
हमराही से बिछड़कर,
अपनों से चाहे लड़कर,
भले अकेले हम,
हारेंगे नहीं हम |
सच का हाथ पकड़कर,
दुश्मन के हाथों मरकर,
फिर-फिर जीयेंगे हम,
हारेंगे नहीं हम |
रस्ते में थोड़ा थककर,
ठोकर खाकर और गिरकर,
फिरसे उठेंगे हम,
हारेंगे नहीं हम |
मंज़िल को अपना बनाकर,
राह के काँटों को मिटाकर,
इक दिन जीतेंगे हम,
तब तक,
हारेंगे नहीं हम ||
अप्रैल 15, 2021
ये इमारत !
नवयौवन के आँगन में,
सौंदर्य के परचम पर,
अनुपम रंगो को कर धारण,
अभिमान का बन उदाहरण,
अपने ही आकर्षण से अभिभूत,
कैसे गौरवान्वित हो रही है ये इमारत !
अपराह्न की बेला में,
गफलत के सबब से,
रूप-रंग थोड़ा है बाकी,
गुज़रे लम्हों का है साक्षी,
बनकर अपनी बस एक झाँकी,
कैसे जीर्ण-क्षीण हो रही है ये इमारत !
कभी कौतूहल का कारण बनी,
खिदमतगारों से रही पटी,
आज खंडहर हो चली है,
सूखे पत्तों की डली है,
माटी में मिलने को आतुर,
कैसे छिन्न-भिन्न हो रही है ये इमारत !
अप्रैल 02, 2021
भगवान ! कहाँ है तू?
जब निहत्थे निरपराधों को सूली पे चढ़ाया जाता है,
जब सरहद पर जवानों का रुधिर बहाया जाता है,
जब धन की ख़ातिर अपने ही बंगले को जलाया जाता है,
जब तन की ख़ातिर औरत को नज़रों में गिराया जाता है,
जब नन्हे-नन्हे बच्चों को भूखे ही सुलाया जाता है,
जब पत्थर की तेरी मूरत पर कंचन को लुटाया जाता है,
जब सच के राही को हरदम बेहद सताया जाता है,
जब गौ के पावन दूध में पानी को मिलाया जाता है,
जब तेरे नाम पर अक्सर पाखण्ड फैलाया जाता है,
जब तेरे नाम पर हिंदू-मुस्लिम को लड़ाया जाता है,
तब-तब मेरे दिल में बस एक ख्याल आता है,
तू सच में है भी या बस किस्सों में ही बताया जाता है ||
मार्च 29, 2021
होली
जीवन में सबके घुल जाएँ खुशियों के हज़ारों रंग,
घृणा रोग सब मिट जाएँ, छाए चहुँ ओर उल्लास उमंग |
मार्च 21, 2021
नुक्कड़
गली के नुक्कड़ पर रोज़,
उनके रूबरू आता हूँ |
फासले इतने हैं मगर ,
कुछ भी कह ना पाता हूँ ||
मार्च 14, 2021
मैं हँसना भूल गया
जब बचपन के मेरे बंधु ने,
चिर विश्वास के तंतु ने,
पीछे से खंजर मार कर,
मेरा भरोसा तोड़ दिया,
मैं हँसना भूल गया |
जब मेरे दफ़्तर में ऊँचे,
पद पर आसीन साहब ने,
मेरे श्रम को अनदेखा कर,
चमचों से नाता जोड़ लिया,
मैं हँसना भूल गया |
जब जन्मों के मेरे साथी ने,
सुख और दुःख के हमराही ने,
दुःख के लम्हों को आता देख,
साथ निभाना छोड़ दिया,
मैं हँसना भूल गया |
जब वर्षों तक सींचे पौधे ने,
उस मेरे अपने बालक ने,
छोटी-छोटी सी बातों पर,
मेरा भर-भर अपमान किया,
मैं हँसना भूल गया |
जिसकी गोदी में रहता था,
जब उस प्यारे से चेहरे ने,
मेरी लाई साड़ी को छोड़,
श्वेत कफ़न ओढ़ लिया,
मैं हँसना भूल गया |
जब मंज़िल की ओर अग्रसर,
पहले से मुश्किल राहों को,
नियति की कुटिल चाल ने,
हर-हर बार मरोड़ दिया,
मैं हँसना भूल गया |
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