अप्रैल 15, 2021

ये इमारत !

हिंदी कविता Hindi Kavita ये इमारत Yeh imaarat

नवयौवन के आँगन में,


सौंदर्य के परचम पर,


अनुपम रंगो को कर धारण,


अभिमान का बन उदाहरण,


अपने ही आकर्षण से अभिभूत,


कैसे गौरवान्वित हो रही है ये इमारत !



अपराह्न की बेला में,


गफलत के सबब से,


रूप-रंग थोड़ा है बाकी,


गुज़रे लम्हों का है साक्षी,


बनकर अपनी बस एक झाँकी,


कैसे जीर्ण-क्षीण हो रही है ये इमारत !



कभी कौतूहल का कारण बनी,


खिदमतगारों से रही पटी,


आज खंडहर हो चली है,


सूखे पत्तों की डली है,


माटी में मिलने को आतुर,


कैसे छिन्न-भिन्न हो रही है ये इमारत !

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