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जून 10, 2022
जून 04, 2022
मध्यमवर्गीय परिवार
मध्यमवर्गीय परिवार,
कूलर एक व्यक्ति चार,
दो कमरे का घरबार,
दाल रोटी और अचार,
कष्टों की है भरमार,
करते ना कभी इज़हार,
जुगाड़ में हैं बड़े होशियार,
सीमित साधन एवं विचार,
पड़ोसियों से है व्यवहार,
कानाफूसी और चटकार,
दो पहियों पर संसार,
छुट्टी बीते सपरिवार,
चाहते हैं छोटी सी कार,
धन के आगे हैं लाचार,
आँखों में सपने हज़ार,
पूरा करना बजट के बाहर,
सहते हैं महँगाई की मार,
सुनती ना इनकी सरकार,
सेल का रहता इंतज़ार,
मोल-भाव करते हर बार,
राशन की लम्बी कतार,
मुफ़्त धनिया है अधिकार,
संभाल के रखते हैं अखबार,
बाद में बिकता बन भंगार,
मेहनत का हैं भण्डार,
किस्मत की रहती दरकार,
पुरखों का करते सत्कार,
बच्चों में है शिष्टाचार,
समझौते जीवन का सार,
इच्छापूर्ति है दुष्वार,
परिवार में परस्पर प्यार,
छोटी-छोटी खुशियाँ अपार ||
मई 28, 2022
गर्मी का Lockdown
सड़कें सारी कोरी हैं, घर में भी तुम झुलसाते हो,
दिन तक तो ठीक है, रातों को भी गरमाते हो,
कोरोना अब कम है, फ़िर भी Lockdown लगवाते हो,
सूरज दादा बोलो तुम, सर्दी में क्यों नहीं आते हो ??
मई 24, 2022
शतरंज की बिसात पर
शतरंज की बिसात पर,
कपट की चाल है चली,
ज़रा ठहर, ज़रा संभल,
सम्मुख तेरे है छली,
फुफकारता भुजंग सा,
बैरी बड़ा महाबली,
साहस जुटा तू रह निडर,
असि उठा तू वार कर,
खुदा का हाथ थाम चल,
सन्मार्ग पर तू रह अटल,
शतरंज की बिसात पर,
शिकस्त की चाल है चली ||
मई 14, 2022
जीवन सागर
जीवन एक विस्तृत सागर है,
मन उसमें बहती नौका है,
अनुभव ही नाना टापू हैं,
लहरें भाग्यरेखा है |
टापू पर यात्री मिलते हैं,
मैंने अक्सर यह देखा है,
भेंट लघु ही होती है,
नियम यह अनोखा है |
दुखदायी यादें पत्थर हैं,
सुख एक फ़ूलों का खोखा है,
सागर में बहती नौका में,
भारी पत्थर क्यों रखा है ?
अप्रैल 16, 2022
राम गुण
जब जननी ने श्रीराम को वन-गमन का आदेश दिया,
माता की आज्ञा को प्रभु ने सहर्ष शिरोधार्य किया,
विपदा में भी मर्यादा में रहकर ही व्यवहार किया,
संकट में धीरज रखने का हम सबको आदर्श दिया ||
अप्रैल 01, 2022
राजाजी आने वाले हैं
नन्हे-नन्हे फूल अब मुरझाने वाले हैं,
खट्टे-मीठे रसभरे फ़ल ललचाने वाले हैं,
गर्मी में तन को ठंडक पहुंचाने वाले हैं,
फ़लों के राजाजी आने वाले हैं |
मार्च 17, 2022
बुरा ना मानो होली है
नीला, पीला, हरा, गुलाबी
रंगों से भरी झोली है,
बुरा ना मानो होली है !
गुजिया की मिठास है संग में
शैतानी व ठिठोली है,
बुरा ना मानो होली है !
ठंडाई में चुपके से
भाँग भी हमने घोली है,
बुरा ना मानो होली है !
पुरखों के माथे पर टीका
यारों के संग खेली है,
बुरा ना मानो होली है !
गली-गली में देखो फिरती
मस्तानों की टोली है,
बुरा ना मानो होली है !
पिचकारी के जल से देखो
भीगी-भीगी चोली है,
बुरा ना मानो होली है !
रंगे-पुते चेहरे हैं सबके
जाने कौन हमजोली है,
बुरा ना मानो होली है !
द्वेष भुलाकर आगे बढ़ना
मिलना ही तो होली है,
बुरा ना मानो होली है !!!
फ़रवरी 20, 2022
सरहद
हवा के झोकों में लहराती फसलों के बीच में,
अपनी मेहनत के पसीने से धरती को सींच के,
सूरज की तपती किरणों से आँखों को भींच के,
बचपन के अपने यार को उसके खेत से आते देखा |
कंधे पर उसके झोला था माथे पर मेहनत के निशान,
कपड़ों पर उसके मिट्टी थी मेरे ही कपड़ों के समान,
मेरी दिशा में अपनी बूढ़ी गर्दन को मोड़ के,
मेरी छवि को देख उसके चेहरे को मुरझाते देखा |
मैं पेड़ों के ऊपर चढ़ता वो नीचे फ़ल पकड़ता था,
मास्टर की मोटी बेंत से मेरे जितना वो डरता था,
जाने कितनी ही रातों को टूटे-फूटे से खाट पर,
बचपन में असंख्य तारों को हमने झपकते देखा |
वो नहरों में नहाना संग में बैठ कर खाना,
इक-दूजे के घर में सारा-सारा दिन बिताना,
छोटी-छोटी सी बातों पर कभी-कभी लड़ जाना,
बचपन की मीठी यादों को नज़रों में मंडराते देखा |
बस यादों में ही संग हैं, दूरी हममें अब हरदम है,
चंद क़दमों का है फ़ासला पर मिलना अब ना संभव है,
अपनी खेतों की सीमा से सटे लोहे के स्तंभ पर,
क्षितिज तक सरहद के बाड़े को हमने जाते देखा ||
फ़रवरी 14, 2022
खिल रहे हैं फूल
खिल रहे हों फूल जैसे इक उजड़ी सी बगिया में,
बरस पड़ा हो प्रताप जैसे इक सूखी सी नदिया पे,
टपक रहीं हों बूँदें जैसे शुष्क दरकती वसुधा पे,
पड़ रही हो छाया जैसे एक थके मुसाफिर पे,
अनुभव ऐसा होता मुझको तेरी बाँहों के घेरे में ||
फ़रवरी 06, 2022
स्वर कोकिला सुश्री लता मंगेशकर जी को श्रद्धांजलि
संगीत की लताओं पर सुरों का फ़ूल था खिला,
गूँजती मधुर ध्वनि में इक सुरीली कोकिला,
काल की कठोरता से फ़ूल धूल हो चला,
ज़िंदा है सुरों में अब भी वो स्वर कोकिला ||
जनवरी 23, 2022
जब डर, मर जाता है
हर बाधा मिट जाती है,
राह से रोड़ा हट जाता है,
दृष्टि स्पष्ट हो जाती है,
गंतव्य भी दिख जाता है,
जब डर, मर जाता है |
मतिभ्रम मिट जाता है,
मन को सुकून आता है,
खुद पर यकीन आता है,
नत सर भी उठ जाता है,
जब डर, मर जाता है |
निर्बल बली हो जाता है,
जो चाहे वो कर जाता है,
गम भी सारे मिट जाते हैं,
जीवन में रंग भर आता है,
जब डर, मर जाता है ||
दिसंबर 31, 2021
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
ट्रैक्टर पर निकली थी रैली,
गणतंत्र पर सवाल था,
लाल किले पर झंडा लेकर,
आतताईयों का बवाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
घर में बंद था पूरा घराना,
परदा ही बस ढाल था,
खौफ की बहती थी वायु,
गंगा का रंग भी लाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
उखड़ रही थी अगणित साँसें,
कोना-कोना अस्पताल था,
शंभू ने किया था ताण्डव,
दर-दर पर काल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
क्षितिज पर छाई फ़िर लाली,
टीका बेमिसाल था,
माँग और आपूर्ति के बीच,
गड्ढा बड़ा विशाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
ओलिंपिक में चला था सिक्का,
पैरालिंपिक तो कमाल था,
वर्षों बाद मिला था सोना,
सच था या ख्याल था ?
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
टूटा था वो एक सितारा,
मायानगरी की जो शान था,
बादशाह की किस्मत में भी,
कोरट का जंजाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
फीकी पड़ रही थी चाय,
मोटा भाई बेहाल था,
सत्ता के गलियारों में भी,
कृषकों का भौकाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
सुलूर से चला था काफिला,
वेलिंगटन में इस्तकबाल था,
रावत जी की किस्मत में पर,
हाय ! लिखा इंतकाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
काशी का बदला था स्वरूप,
मथुरा भविष्यकाल था,
आम आदमी का लेकिन,
फ़िर भी वही हाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
चुनावों का बजा था डंका,
गरमागरम माहौल था,
बापू को भी गाली दे गया,
संत था या घड़ियाल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
स्कूटर पर आता-जाता,
दिखने में कंगाल था,
पर उसके घर में असल में,
200 करोड़ का माल था,
उफ़ ! यह कैसा साल था ?
थोड़ा-थोड़ा हर्ष था इसमें,
थोड़ा सा मलाल था,
थोड़े गम थे थोड़ी खुशियाँ,
जो भी था, भूतकाल था,
जैसा भी यह साल था ||
दिसंबर 27, 2021
पहला प्यार
वो पहला-पहला प्यार,
वो छुप-छुप के दीदार,
वो मन ही मन इकरार,
वो कहने के विचार,
वो सकुचाना हर बार,
फिर आजीवन इंतज़ार ||
दिसंबर 05, 2021
विजयपथ
काँटों के बगैर कोई बागान नहीं होता,
जीत का रस्ता कभी आसान नहीं होता ||
नवंबर 09, 2021
हमने एक बीज बोया था
सूखे निर्जल मरुस्थल में,
मृगतृष्णा के भरम में,
सर्वस्व जब खोया था,
हमने एक बीज बोया था |
जब सपना अपना टूटा था,
अनपेक्षित अंकुर फूटा था,
श्रम से उसको संजोया था,
हमने एक बीज बोया था |
आज मरु पर उपवन छाया है,
जो चाहा था वह पाया है,
फलों से नत लहराया है,
हमने जो बीज बोया था ||
अक्टूबर 28, 2021
प्रकाश का महत्व
ना सतरंगी छटा होती श्याम ही श्याम नज़र आता,
ना जीवन होता धरती पर ना नभ को रवि सजाता,
ना शबनम की बूँदें होतीं ना बादल बारिश बरसाता,
ना जीव-जंतु-कीट होते ना पवन में तरुवर लहराता,
ना कलकल बहती धारा में जीवन कभी पनप पाता,
गर रचनाकर की रचना में प्रकाश स्थान नहीं पाता ||
अक्टूबर 19, 2021
मंज़िल की राहें
जो मार्ग मैंने अपनाया,
जिन काँटों पर मैं चल आया,
यदि उस रस्ते ना जाकर,
पृथक पथ को मैं अपनाता,
बाधाओं से दूरी रखकर,
फूलों पर पग भरता जाता,
क्या उन राहों पर चलकर मैं,
गंतव्य तक पहुँच पाता?
सितंबर 25, 2021
वो सुबह कभी तो आएगी
जब पैरों में बेड़ी नहीं,
कंधों पर खुलते पर होंगे,
जब किस्मत में पिंजरा नहीं,
खुला नीला गगन होगा,
जब बंदिश का बंधन नहीं,
अविरल धारा सा मन होगा,
जब जागते नयनों में भी,
सच होता हर स्वपन होगा ||
अगस्त 14, 2021
मेरे अश्क
मैं बरखा में निकलता हूँ, मन का सुकून पाने को,
अपने अश्कों को बारिश की, बूँदों में छिपाने को ||
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