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दिसंबर 13, 2020
नवंबर 28, 2020
बेमतलब है
मतलब की सारी दुनिया है,
मतलब के सारे रिश्ते हैं,
जिसको मेरी कदर नहीं,
उससे रिश्ता बेमतलब है |
सबके अपने मसले हैं,
सबके अपने मंसूबे हैं,
मन के बहरों से क्या बोलूं,
कुछ भी कहना बेमतलब है |
जीते-जी जीना ना जाना,
कल के जीवन पर पछताना,
हालात बदलने से कतराना,
ऐसा जीवन बेमतलब है ||
नवंबर 06, 2020
मेरे पास समय नहीं है
वो गर्मी की छुट्टियों में मेरा,
नाना-नानी के घर पर जाना,
वो मामा का अपार गुस्सा,
मामी संग जम कर बतियाना,
वो चाचा की शादी पर मेरा,
घोड़ी चढ़कर घबराना,
वो चाची की गोदी में मेरा,
सोने की ज़िद पर अड़ जाना |
बुआ का प्यार माँसी का दुलार,
भाई-बहन खेल-तकरार,
संगी-साथी बचपन के यार,
छोटे-बड़े सब नाते-रिश्तेदार,
याद सब है बस,
मिलने का, बतियाने का,
रूठने का, मनाने का,
मेरे पास समय नहीं है ||
वो कॉलेज की दीवार फाँद,
छुप-छुप के सिनेमाघर जाना,
वो लेक्चर बंक करके,
कैंटीन में गप्पें लड़ाना,
वो जन्मदिन के नाम पर,
बेचारे दोस्त के पैसे लुटाना,
वो अंतिम दिन इक-दूजे से,
फिर-फिर मिलने के वादे सुनाना |
पुराने दोस्त, करीबी यार,
जीवन का पहला-पहला प्यार,
खुशी के पल, गम के हालात,
हँसी-ठिठोले, पहली मुलाकात,
याद सब है बस,
मौज का, मस्ती का,
अल्हड़ मटरगश्ती का,
मेरे पास समय नहीं है ||
वो पहली किरण पर मेरा,
खुले मैदान में दौड़ लगाना,
वो साँझ के समय में,
रैकेट उठाकर खेलने जाना,
वो जागती आँखों से मेरा,
भविष्य के सपने सजाना,
वो दिन-दिनभर मोबाइल पर,
निरंतर वीडियो चलाना |
खेल-कूद गेंद और गिटार,
खुद कुछ कर दिखाने के विचार,
अधूरे ख़्वाब, दिल की चाह,
मन को भाति वो जीवनराह,
याद सब है बस,
सुख का, चैन का,
अपने लिए जीने का,
मेरे पास समय नहीं है ||
अक्टूबर 10, 2020
एक भारतीय का परिचय
क्या मेरी पहचान, क्या मेरी कहानी है,
मज़हब मेरा रोटी है, नाम बेमानी है |
संघर्ष मेरा बचपन है, प्रतिस्पर्धा मेरी जवानी है,
बीमार मेरा बुढ़ापा है, जीवन परेशानी है |
पौराणिक मेरी सभ्यता है, परिचय उससे अनजानी है,
वर्तमान मेरा कोरा है, भविष्य रूहानी है |
सरहदें मेरी चौकस हैं, पड़ोसी बड़े शैतानी हैं,
गुलामी के दाग अब भी हैं, ताकत अपनी ना जानी है |
बाबू मेरे साक्षर हैं, नेता अज्ञानी हैं,
जनता मेरी भोली-भाली, सहती मनमानी है |
रंग मेरा गोरा-काला, बातें आसमानी हैं,
पहनावा मेरा विदेशी है, कृत्यों में नादानी है |
और मेरी पहचान नहीं, नम:कार मेरी निशानी है,
भारत मेरा देश है, दिल्ली राजधानी है ||
सितंबर 26, 2020
कोरोना
यह अनजाना अदृश्य शत्रु,
जाने कहाँ से आया है,
सारी मानव सभ्यता पर,
इसके भय का साया है |
थम गया जो दौड़ रहा था,
निरंतर निरंकुश - यह संसार,
अचल हुए जो चलायमान थे,
व्यक्ति वाहन और व्यापार |
संगी-साथी से छूट गया,
दिन-प्रतिदिन का सरोकार,
घर से बाहर अब ना जाए,
सांसारिक मानव बार-बार |
आशंकित भयभीत किंकर्तव्यविमूढ़,
जूझ रहा आदम भरपूर,
क्या कर पाएगा इस आफ़त को,
वह समय रहते दूर ???
अगस्त 20, 2020
क्यों है मानव इतना अधीर ?
हिंसा का करे अभ्यास,
प्रकृति का करे विनाश,
अणु-अणु करके विखंडित,
ऊष्मा का करे विस्फोट,
स्वजनों पर करे अत्याचार,
लकीरों से धरा को चीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
ट्रेनों में चढ़ती भीड़,
ना समझे किसीकी पीड़,
रनवे पे उतरे विमान,
उठ भागे सीट से इंसान,
बेवजह लगाए कतार,
मानो बंटती आगे खीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
उड़ती जब-जब पतंग,
स्वच्छंद आज़ाद उमंग,
करती घायल उसकी डोर,
जो थी काँच से सराबोर,
खेल-खेल में होड़ में,
धागे को बनाता नंगा शमशीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
नवीन नादान निर्दोष मन,
चहकती आँखें कोमल तन,
डाल उनपर आकांशाओं का भार,
करता बालपन का संहार,
थोपता फैसले अपने हर बार,
समझता उनको अपनी जागीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
तारों को छूने की चाह में,
वशीभूत सृष्टि की थाह में,
वन-वसुधा-वायु में घोले विष,
बेवजह करे प्रकृति से रंजिश,
ना समझे कुदरत के इशारे,
कर्मफल के प्रति ना है गंभीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
दौर यह अद्वितीय आया है,
दो गज की दूरी लाया है,
सदियों से परदे में नारी,
आज नर ने साथ निभाया है,
कुछ निर्बुद्धि निरंकुश निराले नर,
तोड़ें नियम समझें खुद को वीर,
क्यों है मानव इतना अधीर ?
जुलाई 19, 2020
कलम
कोरे-कोरे कागज़ पर,
छोड़कर काले-नीले निशान,
करता जीवंत, फूँकता जान,
नित-नव-नाना दास्तान |
कभी उगलता सुन्दर आखर,
कभी चित्र मनोरम बनता,
कभी रचता घृणा की गाथा,
कभी करता स्नेह का बखान |
कहीं कमीज़ की जेब में अटका,
कहीं बढ़ई के कान पे लटका,
कभी पतलून की जेब में पटका,
कभी पर्स में भीड़ में भटका |
कभी लिखावट मोती जैसी,
कभी चींटी के पदचिन्हों जैसी,
कभी आढ़ी-तिरछी लकीरें खींचे,
नन्हे कर-कमलों को सींचे |
कभी भरे दवाई का पर्चा,
कभी लिखे परचून का खर्चा,
कभी खींचे इमारत का नक्शा,
कभी नेकनामी पर करे सम्मान |
किसी के दाएं कर में शोभित,
किसी के बाएं कर में शोभित,
गर करविहीन स्वामी हो प्रेरित,
सकुचाता नहीं गाता सबका गान ||
फ़रवरी 27, 2020
अकेला
दुनिया के इस रंगमंच पे,
तू अकेला अदाकार है,
ना तेरा कोई साथी,
ना तेरा कोई विकल्प है |
गम अगर हो कोई तुझे,
तो कोई ना उसको बांटेगा,
खुश अगर तू हो गया,
तो गम मौका ताकेगा |
मौका मिलते ही फिरसे,
खुशी तेरी गायब होगी,
गम लौट के आएगा,
दुखी तेरी फितरत होगी ||
मदद किसी की करदे तो,
भलामानस कहलायेगा,
मदद किसी से मांगेगा,
सिर्फ दुत्कार ही पायेगा |
पीठ पीछे बातें होंगी,
खिल्ली तेरी खूब उड़ेगी,
कल तक जो अपने लगते थे,
दूरी उनसे खूब बढ़ेगी ||
सही-गलत में क्या भेद है,
दुनिया इसको भूल चुकी है,
अपना जिसमें लाभ हो,
बाकी गलत सिर्फ़ वही सही है |
सच्चाई का साथ अगर दे,
तो झूठा कहलायेगा,
दुनिया तुझपे थूकेगी,
कुंठित मन हो जाएगा ||
छोड़ दे दूजे की परवाह,
छोड़ दे खुशियों की चाहत,
छोड़ दे सच्चाई का साथ,
सुन ए बंदे पते की बात |
कोई न तेरा अपना है,
कोई न तुझको अपनाएगा,
इस झूठी दुनिया में,
तू,
अकेला आया था,
अकेला ही जाएगा ||
जनवरी 20, 2020
माया
धन की क्या आवश्यकता है? धन सिर्फ एक छलावा है | मोह है | माया है | सत्य की परछाईं मात्र है, जो सिर्फ अंधकार में दिखाई पड़ती है | उजाले में इसका कोई अस्तित्व नहीं | धन सब परेशानियों की जड़ है | सब अपराधों की जननी है | सब व्यसनों का आरम्भ है |
कुदरत ने सब जीव बनाए,
पशु पक्षी मत्स्य तरु,
जल भूमि गिरी आकाश,
कंद मूल फल फूल खिलाए,
अंधकार से दिया प्रकाश ||
पर मनुष्य, तूने क्या दिया?
लोभ मोह दंभ अहंकार,
भेदभाव ऊँच-नीच तकरार !
धन को सर्वोपरि बनाया,
धनी निर्धन में भेद कराया,
माया के इस पाश में फंसकर,
कुदरत को तू समझ न पाया ||
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