मार्च 31, 2023

उपवन

हिंदी कविता Hindi Kavita उपवन Upvan


रोज़ की घुड़दौड़ से, थोड़ा समय बचाकर,


व्यर्थ की आपाधापी से, नज़रें ज़रा चुराकर,


इक दिन फुर्सत पाकर मैं, इक उपवन को चला |



मंद शीतल वायु थी वहाँ खुशबू से भरी,


क्यारियों में सज रही थीं फ़ूलों की लड़ी,


कदम-कदम पर सूखे पत्ते चरचराते थे,


डाली-डाली नभचर बैठे चहचहाते थे,


जब भी पवन का हल्का सा झोंका आता था,


रंगबिरंगा तरुवर पुष्पों को बरसाता था,


कोंपलों ने नवजीवन का गीत सुनाया,


भंवरों की गुंजन ने पीड़ित चित्त को बहलाया |



रोज़ की आपाधापी से मुझे फुर्सत की दरकार क्यों ?


जीवन में ले आता हूँ मैं पतझड़ की बयार क्यों ?


भीतर झाँका पाया सदा मन-उपवन में बहार है |||

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