सितंबर 26, 2020

कोरोना

हिंदी कविता Hindi Kavita कोरोना Corona

यह अनजाना अदृश्य शत्रु,


जाने कहाँ से आया है,


सारी मानव सभ्यता पर,


इसके भय का साया है |



थम गया जो दौड़ रहा था,


निरंतर निरंकुश - यह संसार,


अचल हुए जो चलायमान थे,


व्यक्ति वाहन और व्यापार |



संगी-साथी से छूट गया,


दिन-प्रतिदिन का सरोकार,


घर से बाहर अब ना जाए,


सांसारिक मानव बार-बार |



आशंकित भयभीत किंकर्तव्यविमूढ़,


जूझ रहा आदम भरपूर,


क्या कर पाएगा इस आफ़त को,


वह समय रहते दूर ???

सितंबर 08, 2020

नवजीवन

हिंदी कविता Hindi Kavita नवजीवन Navjeevan

भद्दी नगरीय इमारत पर,


जड़ निष्प्राण ठूँठ पर,


मरु की तपती रेत पर,


गिरी के श्वेत कफ़न पर,


नवजीवन का अंकुर फूटे,


प्रतिकूल पर्यावरण का उपहास कर |

अगस्त 20, 2020

क्यों है मानव इतना अधीर ?

हिंदी कविता Hindi Kavita क्यों है मानव इतना अधीर ? Kyon hai Maanav itna Adheer ?

हिंसा का करे अभ्यास,


प्रकृति का करे विनाश,


अणु-अणु करके विखंडित,


ऊष्मा का करे विस्फोट,


स्वजनों पर करे अत्याचार,


लकीरों से धरा को चीर,


क्यों है मानव इतना अधीर ?



ट्रेनों में चढ़ती भीड़,


ना समझे किसीकी पीड़,


रनवे पे उतरे विमान,


उठ भागे सीट से इंसान,


बेवजह लगाए कतार,


मानो बंटती आगे खीर,


क्यों है मानव इतना अधीर ?



उड़ती जब-जब पतंग,


स्वच्छंद आज़ाद उमंग,


करती घायल उसकी डोर,


जो थी काँच से सराबोर,


खेल-खेल में होड़ में,


धागे को बनाता नंगा शमशीर,


क्यों है मानव इतना अधीर ?



नवीन नादान निर्दोष मन,


चहकती आँखें कोमल तन,


डाल उनपर आकांशाओं का भार,


करता बालपन का संहार,


थोपता फैसले अपने हर बार,


समझता उनको अपनी जागीर,


क्यों है मानव इतना अधीर ?



तारों को छूने की चाह में,


वशीभूत सृष्टि की थाह में,


वन-वसुधा-वायु में घोले विष,


बेवजह करे प्रकृति से रंजिश,


ना समझे कुदरत के इशारे,


कर्मफल के प्रति ना है गंभीर,


क्यों है मानव इतना अधीर ?



दौर यह अद्वितीय आया है,


दो गज की दूरी लाया है,


सदियों से परदे में नारी,


आज नर ने साथ निभाया है,


कुछ निर्बुद्धि निरंकुश निराले नर,


तोड़ें नियम समझें खुद को वीर,


क्यों है मानव इतना अधीर ?

अगस्त 15, 2020

आओ करें हम याद उन्हें

हिंदी कविता Hindi Kavita आओ करें हम याद उन्हें Aao karein hum yaad Unhein

श्रावण के महीने में इक दिन,


बही थी आज़ादी की बयार,


कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को,


बरसी स्वतंत्रता की फुहार |



रवि खिला था रैन घनी में,


दशकों के श्रम का परिणाम,


आओ करें हम याद उन्हें जो,


भेंट चढ़े थे राष्ट्र के नाम ||

जुलाई 30, 2020

मेरा मन

हिंदी कविता Hindi Kavita मेरा मन Mera Mann

जैसे बहती वायु में, पत्तों भरी डाली डोले,


जैसे सावन के झूले-हिंडोले, खाएं हिचकोले,


जैसे नन्हा सा इक बालक, जीवन में चंचलता घोले,


मन मेरा उद्विग्न उतना,


यहाँ ना रुके, वहाँ ना टिके,


इत-उत डोले इत-उत डोले ||

जुलाई 26, 2020

कारगिल

हिंदी कविता Hindi Kavita कारगिल Kargil

जल-मरु-गिरी पृथ्वी-आकाश,


कहीं से आए शत्रु चालाक,


भारत के वीरों के आगे,


सफल न होंगे इरादे ना-पाक ||

जुलाई 19, 2020

कलम

हिंदी कविता Hindi Kavita कलम Kalam

कोरे-कोरे कागज़ पर,


छोड़कर काले-नीले निशान,


करता जीवंत, फूँकता जान,


नित-नव-नाना दास्तान |



कभी उगलता सुन्दर आखर,


कभी चित्र मनोरम बनता,


कभी रचता घृणा की गाथा,


कभी करता स्नेह का बखान |



कहीं कमीज़ की जेब में अटका,


कहीं बढ़ई के कान पे लटका,


कभी पतलून की जेब में पटका,


कभी पर्स में भीड़ में भटका |



कभी लिखावट मोती जैसी,


कभी चींटी के पदचिन्हों जैसी,


कभी आढ़ी-तिरछी लकीरें खींचे,


नन्हे कर-कमलों को सींचे |



कभी भरे दवाई का पर्चा,


कभी लिखे परचून का खर्चा,


कभी खींचे इमारत का नक्शा,


कभी नेकनामी पर करे सम्मान |



किसी के दाएं कर में शोभित,


किसी के बाएं कर में शोभित,


गर करविहीन स्वामी हो प्रेरित,


सकुचाता नहीं गाता सबका गान ||

राम आए हैं